कोरोना वायरस महामारी के चलते मैं भी आजकल दुनियाभर में लाखों लोगों की तरह ऑफिस का काम घर से ही कर रहा हूँ, कभी कभी इंटरनेट पे कोई समाचार या ब्लॉग भी पढता रहता हूँ | मुझे ऐसे ही किसी ब्लॉग को पढ़ते हुए देख के 2 -4 दिन पहले मेरी पत्नी ने मुझसे पूछा, अरे आजकल तुम ब्लॉग नहीं लिखते? क्यों ही लिखोगे, पहले तो तुम अपनी वो xyz के लिए लिखते होंगे, मेरे लिए क्यों ही लिखोगे? कौन कौन थीं वह? उसने मुस्कराते हुए मेरी टांग खींचने के लिए पूछा | मैंने कहा, हाँ बिलकुल सही कहा तुमने, बहुत सारी पाठिकायें थी, किस किस का नाम बताऊ ? बहुत दिनों से मेरी किसी xyz की फरमाइश नहीं हुयी, देखते हैं कब आदेश हो, तब तक तो तुम्हें इंतज़ार करना पड़ेगा, यह कहते हुए मैं अपने ऑफिस के काम में लग गया और मैडम नाश्ते की प्लेट मेरी टेबल पे रख के चली गयी |
एक मीटिंग के बाद दूसरी और फिर तीसरी, ऐसे ही ज्यादातर समय ऑफिस के साथियों के साथ गूगल हैंगऑउट पे मीटिंग करते हुए निकल जाता है | ऐसी ही एक मीटंग के दौरान मैंने अपने लैपटॉप का माइक्रोफोन बंद (म्यूट) किया हुआ था और हैडफ़ोन पे मीटिंग की आवाज़ सुन रहा था, तभी किसी का फ़ोन आया और मैं फ़ोन पे बात करने लगा | इसी दौरान मैंने अपने लैपटॉप पे गूगल हैंगऑउट में एक नोटिफिकेशन देखा, जिसका मतलब कुछ ऐसे था - "क्या आप बात कर रहे हो ? आपका माइक्रोफोन बंद हैं |" मैंने सोचा की कम्प्यूटर्स कितने समझदार हो गए हैं, इन्हे म्यूट पे रखो फिर भी यह सारी बातें सुनते रहते हैं और क्या पता सब कुछ बताये या बिना बताये रिकॉर्ड भी करके रखते हों |
कुछ देर बाद मैंने फ़ोन बंद किया और मीटिंग पे ध्यान देने लगा, लेकिन लैपटॉप और मोबाइल फ़ोन्स के द्वारा लगातार रिकॉर्डिंग बारे में सोचते हुए अपने स्कूल टाइम के हिंदी पढ़ाने वाले गुरुजी श्री दामोदर लाल गुप्ता जी की याद आ गयी | दामोदर गुरूजी हिंदी पढ़ाने के साथ साथ पाढ़यक्रम के बाहर की भी कई कहानियां सुनाते रहते थे, ऐसी ही एक कहानी मुझे याद आ गयी जो कुछ ऐसे है |
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एक दिन सूरदास के दोहे पढ़ाते हुए गुरूजी बोले की जो भी बातें हम बोलते हैं यह सभी आवाज़ की तरंगे होती हैं और तरंगों के माध्यम से ही आवाज़ बोलने वाले के मुँह से निकल के सुनने वालों के कानों तक पहुंचती है | अब तो यह बिलकुल सामान्य बात लगती है लेकिन करीब 21 - 22 साल पहले जब मैं 10वीं कक्षा में पढ़ता था तब यह नयी बात ही थी क्योंकि ध्वनि तरंगों के बारे में शायद तब तक सुना नहीं था | गुरूजी ने आगे बताया की आवाज़ की सभी तरंगे अनंत काल के लिए ब्रह्माण्ड में तैरती रहती हैं कभी विलुप्त नहीं होती और वैज्ञानिक ऐसी तकनीक बना रहे हैं जिससे ब्रह्माण्ड में हज़ारों लाखों वर्षों से तैरती हुयी आवाज़ की तरंगो को फिर से ढूँढा जा सकता है और रिकॉर्ड किया जा सकता है |
जब यह संभव हो जायेगा तो हज़ारों लाखों वर्षों पूर्व ऋषि मुनियों ने जो भी मंत्रोच्चार किये थे वह सभी फिर से रिकॉर्ड किये जा सकेंगे | यहाँ तक की भगवान श्रीकृष्ण ने जो महाभारत युद्ध के समय गीता उपदेश दिया था वह फिर से ढूंढ लिया जायेगा और फिर से सभी को सुनाने के लिए उपलब्ध हो जायेगा | एक लड़के ने पूछा, गुरूजी फिर तो तुलसी दास की रामचरितमानस और सूरदास के सारे दोहे भी वैसे के वैसे ही ब्रह्माण्ड में तैरते हुए मिल जायेंगे जैसे उन्होंने बोले थे ? बिलकुल हो सकता है, गुरूजी ने कहा |
तब मैंने पूछा, गुरु जी अब तक इस धरती पे हज़ारों करोड़ों लोग न जाने कितनी बातें कर के जा चुके हैं, वैज्ञानिक उन बातों तक कैसे पहुंचेंगे जो किसी के काम की हों? गुरूजी कुछ बताते उससे पहले ही एक लड़की बोली की जब वैज्ञानिक पुरानी बातों को ढूंढ के रिकॉर्ड कर सकते हैं तो फिर सारी बातों को अलग अलग कैसेटस में भर के भी रख देंगे, ढूंढ लेना जो तुम्हे चाहियें वह, ठीक है ! तभी एक लड़का, जो सबसे पीछे की लाइन मैं बैठा था वह बोला, बाकी सब तो ठीक है, लेकिन गुरूजी बस यह पता चल जाये की हमारे दादाजी अपनी सारी कमाई किस खेत में गाढ़ के गए थे और उधारी के रुपये पैसे किस किस से वापस लेने हैं | यह बात सुनके कक्षा के सभी छात्र छात्राएं हसने लगे |
खैर गुरूजी अपनी बात कहके चले गए और यह कहानी मेरे ध्यान में अभी तक बनी रही | अब करीब 21 साल बाद यह तो बिलकुल साफ़ है की ऐसी कोई तकनीक पे शायद न तो कोई वैज्ञानिक काम कर रहे थे और न ही ऐसी कोई तकनीक अभी तक विकसित हुयी है, लेकिन यह बात जरूर है की चाहे व्हाट्सऐप्प तब न रहा हुआ हो लेकिन जैसे आजकल व्हाट्सऐप्प पे कुछ भी तरह के सत्य और असत्य सन्देश आते रहते हैं ऐसी ही कथा कहानियां से लोगों का मनोरंजन और ज्ञान अर्जन हज़ारों सालों से होता रहा है |
दूसरी तरफ, गुरूजी की कही बात भले ही हज़ारों साल पुरानी ब्रह्माण्ड में तैरती बातों को रिकॉर्ड करने के मामलें में सही नहीं रही हो लेकिन जब गुरूजी यह बातें हमें कक्षा में सुना रहे थे, करीब करीब उसी समय गूगल नाम की कंपनी की स्थापना इस दुनिया में हो रही थी, जिसने पिछले 21 - 22 वर्षों में न केवल दुनिया भर के करोड़ों वेब साइट्स पे उपलब्ध सारी जानकारी बल्कि हज़ारों साल पुरानी किताबें और सैकड़ों साल पुराने अख़बार खोज के समस्त जनता के लिए रिकॉर्ड करके ऐसे रख दिए जैसे की दामोदर लाल जी के काल्पनिक वैज्ञानिक वास्तव में ब्रह्माण्ड में तैरती हुईं बातों को रिकॉर्ड करने में कामयाब हो गए हों |